*1927 में गामा ने अपनी आखरी फाइट स्वीडन के जेस पीटरसन से लड़ी और इस मैच को भी फ़तेह कर के ख़ामोशी से कुश्ती को हमेशा के लिए अलविदा कर दिया।*

गुलाम मुहम्मद (द ग्रेट गामा)

सियासत दर्पण न्यूज़,पहलवान पिता मुहम्मद अज़ीज़ बख्श के घर 22 मई 1878 को पंजाब के अमृतसर में गामा का जन्म हुआ।

गामा को ताकत और दाव की समझ विरासत में मिली हुयी थी। महज 10 साल के उम्र में ही गामा ने दतिया के महाराज के पास पहलवानी के गुर सिखने सुरु कर दिए थे। पहलवानी के सुरुआति दौर में ही गामा ने कई महारथियों को धूल चटा दी थी।

ये वो दौर था जब गामा ने पहलवानी सुरु करी थी और रोज तरक्की की सीढियां चढ़ने लगे। अब उनका नाम अपने गुरु के अखाड़े से निकल कर आस पास फैलने लगा था। कहा जाता है गामा ने एक बार 1200 किलो का पत्थर उठाकर बड़ौदा के दर्शकों को हैरान कर दिया था। वो पत्थर आज भी बड़ौदा के म्यूज़ियम में रखा हुआ है।

गामा के डाइट में 6 देसी चिकन, 10 लीटर दूध, आधा किलो देशी घी और बादाम का टॉनिक शामिल था।गामा रोज 5000 बैठक और 1000 से जादा दंड लगाते थे।

1895 में गामा का मुकाबला देश के सबसे बड़े पहलवान रुस्तम ए हिन्द रहीम बख्श सुल्तानिवाला से हुआ। रहीम बख्श की लम्बाई 6फिट 9 इंच थी जबकि गामा की लम्बाई 5 फिट 7 इंच।लेकिन गामा जरा भी नही हिचके और रहीम बख्श से बराबर की कुश्ती लड़ी। आखिर में इस मैच को ड्रा करार दिया। अब गामा पुरे भारत में मशहूर हो चुके थे, 1911 में गामा का सामना फिर रहीम बख्श से हुआ।

इस बार रहीम को गामा ने चित करके भारत के सबसे बड़े पहलवान का ख़िताब हासिल कर लिया। भारत में अजेय होने के बाद गामा ने अपने लिए विदेशी पहलवानों से कुश्ती करने का राश्ता खोल लिया था। लेकिन उनकी लम्बाई कम होने के वजह से उन्हें पश्चिमी फाइट में शामिल नही किया गया। इसके बाद गामा ने वहा के पहलवानों को खुला चैलेंज कर दिया पर उनके चैलेंज को उनका मार्केटिंग स्टंट समझा गया। आख़िरकार गामा ने वहा के सबसे बड़े पहलवान स्टैनिश्लाश जबिश्को और फ्रैंक गॉच को खुली चुनौती दे दी।

स्टैनिश्लाश जबिश्को ने गामा की चुनौती स्वीकार कर ली और 10 सितम्बर 1910 को दोनों के बिच कुश्ती हुयी। गामा ने स्टैनिश्लाश को पहले मिनट में ही पटक दिया ।लगभग 2 घण्टे 35 मिनट तक चले इस मैच को ड्रा करार दे दिया गया। 19 सितम्बर को दोबारा मैच रखा गया पर इसमें स्टैनिश्लाश नही आया और इस तरह गामा को वर्ल्ड हैवीवेट अवार्ड से नवाजा गया और वो वर्ल्ड चैंपियन बन गए । ये ख़िताब रुस्तम ए जमा के बराबर था।

उन्होंने फ्रैंक गोंच, बेंजामिन रोलर और स्तानिस्लॉश जैसे वर्ल्ड चैंपियनों को भी अखाड़े में मात दी।

ज्यादातर मैचों में गामा अपने विरोधियों को कुछ मिनटों में ही मात दे दिया करते थे और ज्यादातर मैचों में तो एक मिनट भी नही लगता था। अपने पचास साल के कैरियर में गामा एक भी मैच नही हारे। उनके लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की कोरिया के महान एथलीट ब्रुस ली भी उनसे प्रेरणा लिया करते थे। 1927 में गामा ने अपनी आखरी फाइट स्वीडन के जेस पीटरसन से लड़ी और इस मैच को भी फ़तेह कर के ख़ामोशी से कुश्ती को हमेशा के लिए अलविदा कर दिया।

बंटवारे के वक़्त गामा पाकिस्तान चले गए और जिंदगी के आखरी साँस वही लिए.

23 मई 1960 को प्रसिद्ध पहलवान ‘रूस्तमे ज़मा गामा’ का निधन हुआ था उनका असली नाम ‘ग़ुलाम हुसैन’

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