सियासत दर्पण न्यूज़,,,याचिका में 24.06.2025 और 27.10.2025 के ECI आदेशों द्वारा बस्तर में चल रहे SIR को चुनौती दी गई है। मुख्य दावा: यह प्रक्रिया लाखों आदिवासी, दलित और गरीब मतदाताओं को सूची से बाहर कर सकती है।
1️⃣ बस्तर की खास परिस्थिति
• 7 ज़िले पूरी तरह आदिवासी बहुल, पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र।
• कई गाँवों में आज तक भूमि सर्वे/रिकॉर्ड नहीं।
• सलवा जुडूम–ग्रीन हंट में गाँव जले, दस्तावेज़ नष्ट, बड़े पैमाने पर विस्थापन।
• लगातार नक्सल हिंसा, सुरक्षा प्रतिबंध, आंध्र-तेलंगाना पलायन।
• साक्षरता, इंटरनेट, मोबाइल, सड़क पहुँच बहुत सीमित।
➡️ ऐसी परिस्थितियों में दस्तावेज़-आधारित SIR व्यावहारिक रूप से असम्भव।
2️⃣ SIR में क्या हो रहा है?
• हर मतदाता से 13 दस्तावेज़ों में से एक माँगा जा रहा है (बाद में आधार भी)।
• BLO किसी को अनुपस्थित/स्थानांतरित/डुप्लिकेट बता सकते हैं और नागरिकता पर संदेह भी लिख सकते हैं।
• समयसीमा बहुत कम:
– सर्वे: 4 Nov–4 Dec 2025
– आपत्तियाँ: 9 Dec–8 Jan 2026
➡️ बस्तर के कठिन भूभाग, बारिश, फसल और सुरक्षा स्थिति को देखते हुए यह समयसीमा अव्यावहारिक।
3️⃣ SIR का संभावित प्रभाव
• वैध मतदाताओं का बड़े पैमाने पर बहिष्कार: दस्तावेज़ों की कमी, विस्थापन, मौसमी पलायन, नक्सल हिंसा, और BLO की सीमित पहुँच — इनसे लाखों आदिवासी/गरीबों के नाम हटने का खतरा।
• बाहरी लोगों के नाम आसानी से जुड़ने का डर: जिनके पास दस्तावेज़/इंटरनेट है वे आसानी से पंजीकरण कर सकेंगे।
➡️ इससे जनसांख्यिकी बदल सकती है और स्थानीय प्रतिनिधित्व कमजोर हो सकता है।
• प्रशासनिक असंभवता:
39,000 किमी² जंगल में घर-घर पहुँच पाना लगभग नामुमकिन।
3,128 स्कूल शिक्षक BLO बने — जिससे शिक्षा प्रभावित।
कई गाँव सुरक्षा कारणों से पहुँच के बाहर।
• लगातार हिंसा और असुरक्षा:
सलवा जुडूम से लौटते परिवार, नक्सल गिरफ्तारियाँ/सरेन्डर, धार्मिक हिंसा से विस्थापन — इन सबके बीच निष्पक्ष सर्वे असंभव।
4️⃣ याचिका के मुख्य कानूनी आधार (संक्षेप में)
• नागरिकता में अनुचित दखल — लोगों से दोबारा नागरिकता साबित करवाना अनुचित।
• आदिवासी और गरीब समुदायों पर असमान बोझ व भेदभाव।
• उचित प्रक्रिया के बिना मताधिकार में बाधा।
• SIR की प्रक्रिया जल्दबाज़ी और ज़मीनी हकीकत से कटी हुई।
5️⃣ याचिका में माँग
• 24 June और 27 Oct के आदेश रद्द किए जाएँ।
• छत्तीसगढ़ में SIR की पूरी प्रक्रिया तत्काल रोकी जाए।
🔚 निष्कर्ष
याचिका कहती है कि SIR बस्तर की वास्तविक परिस्थितियों की अनदेखी करता है, आदिवासियों के मताधिकार को खतरे में डालता है, पाँचवीं अनुसूची की सुरक्षा को कमजोर करता है और लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को स्थायी नुकसान पहुँचा सकता है।






