*माओवादी हिड़मा की मौत पर मां की प्रतिक्रिया*

सुकमा:(सियासत दर्पण न्यूज़) देश भर में हिड़मा की मौत की खबर एक बड़ी सुर्ख़ी बन चुकी थी, लेकिन सुकमा के उसके गृह ग्राम पूवर्ती में माहौल एकदम अलग था। वहां के ग्रामीण और यहां तक कि उसके अपने परिजन भी इस सच्चाई से अनजान थे। जैसे ही यह खबर स्थानीय इंटरनेट मीडिया पर आई और मारे गए हिड़मा की तस्वीरें गांव तक पहुंचीं, एक असहज सन्नाटा छा गया।

हिड़मा का खौफ इलाके में इतना गहरा था कि गांव के युवा, और यहां तक कि उसकी मां पूंजी ने भी पहले उसे पहचानने से साफ इंकार कर दिया। मानो हर कोई इस खौफनाक नाम से अपना संबंध तोड़ लेना चाहता हो। बाद में, फुसफुसाहटों के बीच ग्रामीणों ने दबी हुई आवाज़ में पुष्टि की यह वही हिड़मा है। उन्हें इस बात पर भी हैरानी थी कि दहशत का यह पर्याय इतनी आसान मौत कैसे मारा जा सकता है।

पूरा गांव प्रशासन द्वारा आयोजित एक शिविर में मौजूद था। जब हिड़मा की बूढ़ी मां, माड़वी पूंजी को तस्वीर दिखाई गई, तो वह पहले उसे पहचान नहीं पाईं। लेकिन जब उन्होंने तस्वीर को गौर से देखा, तो ममता का बांध टूट गया। उनकी आंखें भर आईं, लेकिन खुद को संभालते हुए उन्होंने एक ही सवाल पूछा, शव कैसे आएगा? शायद उन्हें इस बात का एहसास हो गया था कि उनके बेटे का खौफ भरा अध्याय अब खत्म हो चुका है, और वह कभी लौटकर नहीं आएगा।

बता दें कि कुछ दिन पहले ही, डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने पूवर्ती आकर ग्रामीणों से शांति और आत्मसमर्पण की अपील की थी। मां ने भी बेटे को घर लौट आने को कहा, पर माओवादी हिंसा में अंधे हो चुके बेटे ने मां की बात नहीं मानी और बेटा नहीं उसका शव गांव आएगा।

कभी हिड़मा की दहशत में जीने वाला यह गांव आज प्रशासन के शिविरों में है, जहां लोग अब सरकारी योजनाओं का लाभ ले रहे हैं। ग्रामीणों का यह भी मानना था कि हिड़मा को समय रहते आत्मसमर्पण कर देना चाहिए था, क्योंकि अब सरकार का दबाव लगातार बढ़ रहा था। दहशत का साया अब भी है, लेकिन एक बेटे की मौत ने उसे एक मानवीय मोड़ दे दिया है। पूवर्ती गांव अब खौफ के अध्याय को बंद कर, विकास और शांति की नई शुरुआत की ओर देख रहा है।

सुरक्षा बलों के बड़े परेशन में आंध्रा-ओडिशा सीमा (एओबी) डिविजन के 400 किमी दुर्गम क्षेत्र में कुख्यात माओवादी हिड़मा सहित छह माओवादी मारे गए हैं। यह क्षेत्र दशकों से माओवादियों का सुरक्षित ठिकाना था। बस्तर से भागा हिड़मा, 2018 में गुरुप्रिया पुल बनने के बाद कमज़ोर पड़े माओवादी आंदोलन को फिर से खड़ा करने की कोशिश में था।

पूर्व में राम कृष्णा, उदय, और अरुणा जैसे बड़े कमांडरों के मारे जाने से यह आंदोलन लगभग निष्क्रिय हो चुका था। खुफिया सूचना पर सुरक्षा बलों ने हिड़मा और उसके साथियों को मार गिराया, जिससे एओबी क्षेत्र में माओवादियों के पुनरुत्थान के प्रयास शुरुआती चरण में ही विफल हो गए। यह कार्रवाई लाल आतंक पर करारा प्रहार है।

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