*माओवादियों से निपटने में मददगार हो रहे 728 मोबाइल टावर*

रायपुर। (सियासत दर्पण न्यूज़) बस्तर में माओवादी गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए खड़ा किया गया संचार तंत्र अब सुरक्षा बलों की सबसे मजबूत ढाल बन चुका है। अधिकारियों के मुताबिक क्षेत्र में स्थापित 728 मोबाइल टावरों ने पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा एजेंसियों की क्षमताएं कई गुना बढ़ा दी हैं। माओवाद प्रभावित इलाकों में संचार का अभाव लंबे समय तक सुरक्षा बलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती रहा, लेकिन अब स्थिति तेजी से बदल रही है। अगस्त 2025 में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में रायपुर में हुई उच्च स्तरीय बैठक के बाद यह तय किया गया था कि माओवाद से निपटने के लिए पड़ोसी राज्य रियल टाइम सूचना साझाकरण प्रणाली पर मिलकर काम करेंगे। इस सिस्टम के शुरू होने से माओवादियों की गतिविधियों पर वास्तविक समय में नजर रखी जा रही है। नतीजतन, प्रतिबंधित संगठन की गतिविधियों और मूवमेंट को सुरक्षा बल समय रहते पकड़ पा रहे हैं और माओवादी लगातार सुरक्षा एजेंसियों के रडार में बने हुए हैं।

प्रदेश में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में माओवादी प्रभावित इलाकों में सुरक्षा और विकास दोनों को साथ लेकर चलने की रणनीति तेजी से आगे बढ़ रही है। सरकार आने के बाद 69 नए सुरक्षा कैंप खोले गए हैं। इन कैंपों के आसपास स्थित 403 गांवों में नौ विभागों की 18 सामुदायिक सेवाएं और 11 विभागों की 25 व्यक्तिमूलक योजनाएं पहुंचाई जा रही हैं। पहली बार इन दुर्गम गांवों तक योजनाओं की सीधी पहुंच बनाई गई है, जिससे विकास कार्यों में अभूतपूर्व तेजी आई है।

मोबाइल नेटवर्क विस्तार भी इसी रणनीति का हिस्सा है। क्षेत्र में 728 नए मोबाइल टावर स्थापित किए गए हैं, जिनमें 467 टावर विशेष रूप से 4-जी नेटवर्क के लिए लगाए गए हैं। साथ ही 449 टावरों को 2-जी से 4-जी में अपग्रेड किया गया है। इससे सुरक्षा बलों को न केवल बेहतर संचार सुविधा मिली है, बल्कि माओवाद प्रभावित गांवों में रहने वाले लोगों तक भी अब बगैर किसी बाधा के नेटवर्क सेवा पहुंचने लगी है।

सुरक्षा बल के जवान अब इन टावरों का तकनीकी रूप से सदुपयोग कर माओवादियों की गतिविधियों को ट्रैक करने में सक्षम हो रहे हैं। जानकारों का कहना है कि दूसरी ओर, माओवादी मोबाइल फोन उपयोग करने से लगातार बचते हैं। वे जानते हैं कि डिजिटल फुटप्रिंट के आधार पर उनकी लोकेशन आसानी से ट्रैक की जा सकती है। यही कारण है कि वे मोबाइल का इस्तेमाल बेहद कम या बिल्कुल नहीं करते। लेकिन नेटवर्क विस्तार के बाद सुरक्षा एजेंसियां अब इलाके में होने वाली संदिग्ध गतिविधियों और किसी भी असामान्य सिग्नल पैटर्न को पकड़ पाने में सक्षम हो चुकी हैं।

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