सियासत दर्पण न्यूज़ भिलाई से जावेद हसन की खबर
भिलाई,सियासत दर्पण न्यूज़,हाफिज अजमलुदीन हैदर साहब पिछले कुछ दिनों से वह शहर के एक निजी अस्पताल में भर्ती थे। अंततः दिनांक 30 सितंबर दिन सोमवार दोपहर में उन्होंने आखरी सांस ली l उनके इंतेक़ाल (निधन) की खबर से इस्पात नगरी भिलाई,दुर्ग में शोक व्याप्त है। मरहूम हैदर साहब शहर के हर वर्ग और समुदाय के बीच एक जानी पहचानी शख्सियत थे। वे अपने सहज स्वभाव के कारण हर दिल अज़ीज़ थे । रोजाना लोग उनके पास दुआएं करवाने के लिए पहुंचते थे। वे कभी किसी को मना नहीं करते

उनके इंतकाल की खबर मिलते ही उनके निवास पर लोगों की भीड़ होनी शुरू हो गई थी देखते देखते भारी मजमा इकट्ठा हो गया ।
पहले उनका जनाजा ईदगाह मैदान सेक्टर-6 में रात लगभग 09:30 pm तक सबके आखरी दीदार के लिए रखा गया,फिर नमाज़ ए जनाजा रात तकरीबन 09:30 बजे के बाद ईदगाह मैदान में पढ़ाई गई,उसके बाद कब्रिस्तान ( कैम्प 1 ) के लिए सब रवाना हुए , हैदरगंज में उन्हें सुपुर्द- ए- ख़ाक किया गया । इस दौरान आस पास की तमाम मस्जिदों के इमामो खतीब मस्जिद कमेटियों के ओहदेदार विभिन्न सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी और सभी धर्म समुदाय के लोग बड़ी तादाद में मौजूद थे
29 दिसंबर 1942 को जन्मे हाफिज अजमलुद्दीन हैदर साहब ने 1965 में 22 साल की उम्र में हाफिजे कुरआन- व आलिम का दर्जा जामअे अरबिया इस्लामिया नागपुर(महाराष्ट) से हासिल किया। इसके बाद वह अपने वालिद हाजी हाफिज अफजलुद्दीन हैदर के पास आ गए, जो कि जामा मस्जिद दुर्ग में पेशइमाम थे। कुछ ही दिन बाद वह भिलाई की गौसिया मस्जिद कैम्प-1 में इमाम हो गए। यहां इमाम रहते हुए भिलाई में ईदुल फित्र व ईदुल अजहा की नमाज पढ़ाने के लिए जामा मस्जिद सेक्टर-6 की इंतेजामिया कमेटी उन्हें बुलाया करती थी। क्योंकि उस दौर में सेक्टर-6 मस्जिद में स्थाई तौर पर इमाम की कोई व्यवस्था नहीं थी।
बाद के दौर में भिलाई नगर मस्जिद ट्रस्ट सेक्टर-6 के बुलावे पर उन्होंने 11 जनवरी 1970 से यहां स्थाई तौर पर इमामत शुरू की। सन 2000 में इमाम अजमलुद्दीन हैदर हज्जे बैतुल्लाह के लिए गए। वहां से लौटने के बाद भी मस्जिद में इमामत करते रहे लेकिन बाद में बाईपास सर्जरी होने की वजह से सेहत को लेकर दिक्कतें आने लगी। ऐसे में मस्जिद कमेटी को उन्होंने इमामत से अपना इस्तीफा सौंप दिया,लेकिन कमेटी वालों ने उन्हें बने रहने के लिए कहा। इस पर उन्होंने मस्जिद की खिदमत तो कुबूल कर ली लेकिन इसके बाद तनख्वाह लेने से इनकार कर दिया। फिर दिसंबर 2015 से उन्होंने सेहत को देखते हुए मस्जिद से इमामत का ओहदा छोड़ दिया। इसके बाद से वह मस्जिद के पास ही सेक्टर-2 में रहते हुए भी कौम की खिदमत में लगे रहे,उनके पास सभी धर्म समुदाय के लोग दुआ के लिए आते थे,






