
सियासत दर्पण न्यूज़ कांकेर से गणेश तिवारी की रिपोर्ट
कांकेर नगर,सियासत दर्पण न्यूज़, पालिका के वार्ड क्रमांक 19, अघननगर स्थित दुधवा तालाब के सौंदर्यीकरण, सफाई एवं विद्युतीकरण कार्य को लेकर निकाली गई 33.12 लाख की निविदा एक बार फिर विवादों के घेरे में आ गई है। यह निविदा 16 मई 2025 को खोली जानी थी, लेकिन एक माह तक इसे जानबूझकर लटकाया गया और अंततः जून माह में उसे निरस्त कर दिया गया। इस पूरी प्रक्रिया ने न केवल नगरपालिका प्रशासन की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि इस बात की पुष्टि भी कर दी है कि सरकारी योजनाएं अब ‘जनहित’ से अधिक ‘निजी हितों’ के लिए चलाई जा रही हैं।
जनसहयोग से हो चुका काम, फिर भी निकाला गया टेंडर
जिस कार्य के लिए लाखों की निविदा जारी की गई थी, वह कार्य क्षेत्रवासियों के सहयोग से पहले ही लगभग पूर्ण कराया जा चुका था। बावजूद इसके,उसी कार्य के लिए पुनः टेंडर निकालना दर्शाता है कि यह सब ‘ठेकेदार सेटिंग’ के तहत योजनाबद्ध रूप से किया जा रहा था। कांग्रेस ने इस पूरे खेल को समय रहते उजागर किया और ठोस तथ्यों के साथ मामले को जनता और प्रशासन के सामने रखा,जिससे अधिकारियों की रणनीति धराशायी हो गई।
ठेकेदारों के विवाद ने बिगाड़ा अधिकारियों का खेल
सूत्रों की मानें तो निविदा में एक से अधिक ठेकेदारों की भागीदारी हो गई थी, जिससे अधिकारियों की ‘मनचाही डील’ पर पानी फिर गया। अब चहेते ठेकेदार को काम सौंपने की योजना सफल नहीं हो सकी, इसलिए निविदा खोली ही नहीं गई। विवाद इतना बढ़ा कि सीएमओ और ठेकेदारों के बीच जबानी जंग छिड़ गई। मामला थाने तक जा पहुंचा और कर्मचारियों ने विरोध स्वरूप हड़ताल जैसी स्थिति निर्मित कर दी।
‘कलेक्टर साहब का इंट्रेस्ट’ – यह कौन सी प्रशासनिक भाषा है?
सबसे सनसनीखेज बात यह रही कि एक ठेकेदार ने लिखित में आरोप लगाया कि सीएमओ ने निविदा संबंधी कार्य में “कलेक्टर साहब का इंट्रेस्ट” होने की बात कही थी। इस पर कांग्रेस ने कलेक्टर को ज्ञापन सौंप तत्काल निविदा खोलने की मांग की, परंतु कलेक्टर ने टेंडर प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं किया। इससे विपक्ष ने सवाल खड़े कर दिए कि क्या वास्तव में यह पूरा मामला ‘इंट्रेस्ट का खेल’ था?
निरस्तीकरण में शब्दों की बाजीगरी
जब निविदा को रद्द किया गया, तो उसमें भी शब्दों का मायाजाल बुन दिया गया। प्रारंभिक निविदा में ‘साफ-सफाई और प्लांटेशन’ कार्य का उल्लेख था, लेकिन निरस्तीकरण आदेश में उसे ‘जीर्णोद्धार और प्लांटेशन’ कहा गया। साथ ही यह तर्क दिया गया कि नगर पालिका द्वारा कार्य न किए जाने के कारण प्रशासकीय स्वीकृति निरस्त की जाती है। सवाल यह है कि जब निविदा खोली ही नहीं गई और कार्य आदेश जारी नहीं हुआ तो भला काम शुरू कैसे होता? और जो कार्य पहले ही हो चुका है, उस पर नई निविदा क्यों बुलाई गई?
कांग्रेस ने निभाई विपक्ष की जिम्मेदारी, अब नेताजी पर टिकी निगाहें
कांग्रेस नेता सुनील गोस्वामी ने इस मामले में तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “भ्रष्ट अधिकारियों के मंसूबों पर कांग्रेस ने पानी फेर दिया। दूध का दूध और पानी का पानी अब साफ हो गया है। लेकिन अब भी सवाल वही है—इन अधिकारियों को संरक्षण देने वाला नेता आखिर कौन है?”
सुनील गोस्वामी ने यह भी खुलासा किया कि कांग्रेस जल्द ही एक और टेंडर घोटाले का पर्दाफाश करने वाली है, जिसमें RES विभाग से निकला 90 लाख रुपये का टेंडर निरस्त कर, उसे 3 से 4 टुकड़ों में ग्राम पंचायत स्तर पर बांट दिया गया है। गोस्वामी ने पूछा, “आखिर ऐसा कौन सा नेता है, जो अपने 10% ‘इंट्रेस्ट’ के चक्कर में पंचवर्षीय राजनीति को दलालगिरी में बदलने पर तुला है?”
जनता अब जाग चुकी है
अब कांकेर की जनता न केवल देख रही है, बल्कि समझ रही है कि किस तरह विकास योजनाओं को ‘ठेका संस्कृति’ में तब्दील किया जा रहा है। कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाकर न केवल विपक्ष की भूमिका निभाई है बल्कि यह भी स्पष्ट किया है कि सत्ता के गलियारों में बैठे कुछ लोग, ठेकेदारी को ही राजनीति का साधन बना चुके हैं।