जगदलपुर:(सियासत दर्पण न्यूज़) पास्टर और पादरी का प्रवेश सख्त मना है! बस्तर जिले के सिड़मुर गांव के सुंदरादेवी मंदिर के पास लगाए गए बोर्ड पर साफ-साफ लिखी यह चेतावनी बस्तर के गांव में हो रहे अवैध मतांतरण के विरुद्ध ग्रामीणों में पनपते जनाक्रोश को बताता दिखाई पड़ा।
भतरा जनजातीय बहुल इस गांव में चार दिन पहले हुई सामाजिक बैठक में एकमत होकर ईसाई मिशनरियों और उनसे जुड़े लोगों के प्रवेश पर रोक लगा दी। करीब 270 परिवारों के इस गांव में ग्रामीणों ने कहा अब हमारी संस्कृति, परंपरा और देवगुड़ियों की रक्षा हम खुद करेंगे।
गांव के युवक कार्तिक गोयल बताते हैं कि आस-पास के इलाकों में चंगाई सभा और प्रार्थना के नाम पर लोगों को भय और भ्रम में डालकर धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है। जहां कभी देवगुड़ियां होती थीं, वहां अब चर्च खड़े हो गए हैं।
गांव के अधेड़ पाकलुराम भारती के शब्दों में, अगर यह चलन यूं ही चलता रहा, तो बस्तर की हजारों साल पुरानी संस्कृति ही मिट जाएगी। गांव के लोगों का कहना है कि अब तक केवल सात-आठ परिवार मतांतरित हुए हैं, लेकिन वे आने वाले समय के खतरे को भांप चुके हैं। जिन गांवों में 60–70 परिवार तक मतांतरित हो चुके हैं, वहां तो सामाजिक विभाजन और तनाव आम बात हो गई है।
इसी गांव के बलराम कश्यप, जो कुछ वर्ष पहले मतांतरित हुए, बताते हैं कि मां कुष्ठ रोग से पीड़ित थीं, पादरी ने कहा था प्रार्थना से ठीक हो जाएंगी। बीमारी तो नहीं गई, पर अब पूरा परिवार मतांतरित हो गया। बलराम के घर के आंगन में बना पक्का चर्च गांव में विवाद का केंद्र बन गया है।
हाल ही में ग्राम सभा के निर्णय के बाद उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया है, वे बताते हैं कि तीन दिनों से उनकी किराने की दुकान पर कोई ग्राहक नहीं आया। गांव की सीमा में अब मतांतरित परिवारों के शवों के दफनाने तक पर रोक लगा दी गई है। गांव दो टुकड़े में बंट चुका है।
बस्तर अंचल में सिड़मुर अकेला नहीं है। इसी तरह कांकेर जिले के नरहरपुर विकासखंड के 13 गांवों में अब तक इसी तरह के प्रस्ताव पारित हो चुके हैं। जामगांव इस सूची में सबसे नया नाम है। ग्रामीणों का कहना है, हमारा विरोध किसी धर्म से नहीं, बल्कि लालच और प्रलोभन से कराए जा रहे मतांतरण से है, जो आदिवासी संस्कृति को तोड़ रहा है। पांच माह पहले जामगांव में एक मतांतरित परिवार की मृत्यु के बाद विवाद बढ़ा था। तब ग्राम सभा ने तय किया कि गांव की सीमाओं में बिना अनुमति कोई पास्टर या पादरी नहीं आएगा। इस निर्णय के बाद अन्य गांव भी इसी राह पर चल पड़े हैं।
इधर, बस्तर में घर वापसी की पहल भी गति पकड़ रही है। सिड़मुर से लगे अलनार गांव में शनिवार को 25 वर्ष पहले मतांतरित हुए एक परिवार के आठ सदस्यों ने सनातन धर्म में वापसी की। महारा समाज की पहल पर आयोजित पूजा-अनुष्ठान में इच्छाबती, नारायण, जयमनी, कंचन, दीपिका, सविता, बनू और कुमारी ने पुनः पारंपरिक रीति से धर्म ग्रहण किया।
महारा समाज जिला उपाध्यक्ष आकाश कश्यप ने कहा, हम किसी से वैर नहीं चाहते, बस अपनी संस्कृति को बचाना चाहते हैं। जो लोग भ्रम में चले गए, वे लौटें, समाज उनके साथ है। समाज प्रमुखों के अनुसार, पिछले दो वर्षों में बस्तर अंचल में करीब 20 प्रतिशत मतांतरित परिवार मूल धर्म में लौट चुके हैं।
जनजातीय समाज अब जाग चुका है। अब गांव खुद निर्णय ले रहे हैं कि कौन उनके बीच आ सकता है और कौन नहीं। यह आंदोलन किसी धर्म के विरुद्ध नहीं, बल्कि संस्कृति की अस्मिता के पक्ष में है।
-राजाराम तोड़ेम, प्रांतीय अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ सर्व आदिवासी समाज







