बिलासपुर: (सियासत दर्पण न्यूज़) छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने किशोर न्याय अधिनियम की व्याख्या करते हुए एक ऐतिहासिक और मार्गदर्शक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने हत्या के प्रयास (आइपीसी धारा 307) के एक मामले में दोषी ठहराए गए किशोर की उम्रकैद की सजा को निरस्त कर दिया है। हाई कोर्ट की जस्टिस संजय के अग्रवाल डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि धारा 307 के अंतर्गत किया गया अपराध गंभीर माना जा सकता है, लेकिन यह जघन्य अपराध की श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि न्यूनतम सात साल की सजा का प्रावधान नहीं है। कोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के शिल्पा मित्तल बनाम भारत सरकार मामले का उल्लेख करते हुए यह भी कहा कि किसी अपराध को जघन्य तभी माना जा सकता है जब उसमें न्यूनतम 7 साल की सजा स्पष्ट रूप से निर्धारित हो। इसी आधार पर हाई कोर्ट ने नाबालिग को वयस्क मानकर की गई सुनवाई को कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण करार दिया।






